डा. गुलाब सिंह राणा भी छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरने के दौरान जखोली विकासखंड के दूरस्थ पालाकुराली गांव (तब टिहरी जनपद का हिस्सा था) में उपस्थित थे। उस दिन, डॉ. गुलाम ने बताया कि सभी कारसेवक विवादित ढांचे को गिराने में जुट गए थे।
उस समय सिर्फ जय श्रीराम के जयकारे सुनाई दे रहे थे। इस घटना में बहुत से चालक भी घायल हो गए थे। दिन भर घटनास्थल पर एंबुलेंस के सायरन बजते रहे। 82 वर्षीय डा. गुलाब सिंह राणा, जो स्कूली जीवन से सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे हैं, अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर गदगद हैं। उनका कहना था कि टिहरी जिले के कई गांवों से ओम प्रकाश भट्ट, ज्योति गैरोला, चंद्र सिंह रावत और गोबरू लाल दो दिसंबर 1992 को ऋषिकेश पहुंचे थे।
उस स्थान से सभी लोग बस में सवार होकर फैजाबाद स्टेशन से अयोध्या पहुंचे। छह दिसंबर 1992 को सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के आसपास भारी पुलिस बलों और अन्य सुरक्षा बलों की तैनाती शुरू हो गई थी। विवादित ढांचे की सुरक्षा के लिए तीन चरणों में बैरिकेटिंग की गई थी, लेकिन कार सेवकों का हुजूम वहां पहुंचते ही सारी सुरक्षा प्रणाली बंद हो गईं।
तीन दिन तक वहीं फंसे रहे
डॉ. गुलाब ने बताया कि कार सेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। इस दौरान बहुत से कार चालक घायल हो गए, जिन्हें एंबुलेंस से अस्पताल भेजा गया। घटना के बाद उस क्षेत्र में सिर्फ एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी की आवाज़ें सुनाई देती थीं। उसने बताया कि वह अन्य कार सेवकों के साथ वहां से ईंट लेकर निकले। उस दिन पूरे अयोध्या में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। दारुलसभा जैसे-तैसे कैंटीन में भोजन के लिए पहुंचे। लेकिन सिर्फ पका हुआ चावल ही वहाँ था। उसमें दाल और सब्जी के अलावा नमक भी नहीं था। हमने फिर आधा प्लेट पका चावल खाया।
निमंत्रण नहीं मिलने पर असंतोष
कार सेवक डा. गुलाब सिंह राणा ने कहा कि वे प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बहुत उत्साहित थे, लेकिन 22 जनवरी के कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं मिला है। वह इससे थोड़ा निराश हैं, लेकिन वे खुश हैं कि आराध्य श्रीराम अपने मंदिर में विराजमान हैं।