उत्तराखंड में नैनीताल हाई कोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर उत्पन्न हुई हिंसा का कारण क्या है? समझिए पूरा मुद्दा

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उत्तराखंड हाइकोर्ट की शिफ्टिंग का मामला फिर से अनदेखा हो गया है। मुख्य न्यायाधीश ने गौलापार को इसके लिए अयोग्य ठिकाना बताते हुए अधिवक्ताओं से इसके लिए एक नया स्थान प्रस्ताव करने को कहा है। बीते पांच वर्षों में, अधिवक्ताओं के बीच एक राय नहीं बन सकी और विभिन्न स्थानों से प्रस्ताव और दावे आते रहे. शासन, प्रशासन और सरकारी एजेंसियां भी इस मामले में इतनी भ्रमित नजर आईं कि एक सरकारी संस्था एक उपयुक्त प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दी।

लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में गौलापार में कोर्ट बनाने की आधी-अधूरी सहमति दी, जो केंद्रीय न्याय मंत्रालय और सरकार की ही एक अन्य संस्था ने अनुपयुक्त बताते हुए स्वीकार नहीं की।

आनन फानन में इसके लिए बेल बसानी की भूमि सुझाई गई तो पता चला वहां की भूमि इस लायक है ही नहीं जिस पर कोर्ट बन सके और अब आखिरकार हाइकोर्ट ने स्वयं ही गौलापार को इसके लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया है। इससे मामला अब फिर वहीं पहुंच गया है जहां से पांच वर्ष पहले शुरू हुआ था।

2000 में पृथक राज्य बनने पर 9 नवंबर 2000 को हाइकोर्ट का गठन हुआ। तब यह केंद्रीय कानून मंत्री अरुण जेटली का सपना था। 2019 में वरिष्ठ न्यायाधीश एमसी कांडपाल ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन को पत्र लिखकर कोर्ट को यहां से हल्द्वानी स्थानांतरित करने की मांग की। 26 जून 2019 को हाइकोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर शिफ्टिंग के स्थानों पर सुझाव मांगे। इस पर अधिवक्ता आपस में विभाजित हो गए और कोर्ट को नैनीताल में ही रहने देने से लेकर हल्द्वानी, रामनगर, रूड़की, हरिद्वार, रुद्रपुर देहरादून, अल्मोड़ा और गैरसैंण में स्थानांतरित करने के सुझाव आए, जो किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे।

16 नवंबर 2022 को प्रदेश के पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट ने न्यायालय को हल्द्वानी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव पारित किया। 24 मार्च 2023 को केंद्रीय सरकार ने भी इसके लिए सैद्धांतिक सहमति दी। केंद्रीय विधि राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने उत्तराखंड सरकार से आवश्यक जमीन प्रदान करने की मांग की। केंद्र ने यह भी शर्त रखी कि हल्द्वानी में हाईकोर्ट को आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के बाद केंद्र सरकार हाईकोर्ट को शिफ्ट करने की अधिसूचना की प्रक्रिया शुरू करेगी। सरकार ने गौलापार की भूमि को इसके लिए उपयुक्त बताया और 12 जनवरी 2024 को धामी सरकार की कैबिनेट ने नियोजित विकास के उद्देश्य से गौलापार के आस-पास की भूमि की खरीद और बिक्री पर रोक लगा दी।

इसके लिए भी एक वर्ष में एक महायोजना बनाने का फैसला किया गया था। 24 जनवरी को, केंद्र सरकार की हाई इम्पावर्ड कमेटी ने वन भूमि हस्तातंरण का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इसके लिए शासन ने बेल बसानी में भूमि सुझाई, जो कहीं से भी उपयुक्त नहीं थी। शासन ने गौलापार में 20.08 प्रस्ताव को फिर से भेजने का निर्णय लेते हुए 10 मई तक भूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव को परिवेश पोर्टल में अपलोड करने के निर्देश दिए। हाइकोर्ट ने बुधवार को गौलापार को अनुपयुक्त घोषित करते हुए नए सिरे से स्थान को लेकर सुझाव मांगे, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।