क्या है वंदे मातरम विवाद? जानिए पीएम मोदी का संदेश

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 प्रस्तावना

“वंदे मातरम”  ये सिर्फ दो शब्द नहीं, बल्कि भारत की आज़ादी की लड़ाई का वो जोश है जिसने करोड़ों भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की आग जगाई। लेकिन आज़ादी के 75 साल बाद भी, इस नारे को लेकर देश में बहस और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा।

हाल ही में “वंदे मातरम” गीत को लेकर फिर से विवाद उठा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं से अपील की है कि वे अफवाहों में न आएं, और इस गीत की असली भावना को खुद समझें  इतिहास को पढ़ें, तथ्यों को जानें, और फिर अपनी राय बनाएं।

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लेकिन आखिर यह विवाद है क्या? कब शुरू हुआ? और अब फिर से चर्चा में क्यों है? आइए जानते हैं पूरा मामला विस्तार से।

 वंदे मातरम का इतिहास

“वंदे मातरम” कविता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में संस्कृत और बंगाली मिश्रित भाषा में लिखी थी। यह कविता बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में शामिल की गई।

यह गीत भारत मां की स्तुति में लिखा गया था, जिसमें मातृभूमि को देवी दुर्गा के रूप में दर्शाया गया है। गीत के प्रारंभिक दो पद इस प्रकार हैं 

“वंदे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्…”

इन्हीं दो पंक्तियों को स्वतंत्रता संग्राम के समय राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किया गया था।

24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया  लेकिन केवल पहले दो पदों को ही मान्यता दी गई।

 विवाद कैसे शुरू हुआ?

विवाद की जड़ इस गीत के बाद के हिस्सों में है जहाँ “दुर्गा”, “कमला”, “लक्ष्मी” जैसी देवी-देवताओं का उल्लेख आता है।

कई मुस्लिम नेताओं ने कहा कि यह गीत एक विशेष धर्म की देवी की स्तुति करता है, जिससे अन्य धर्मों के लोग इससे जुड़ नहीं पाते।

  • 1937 में कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं ने इस पर विचार किया और फैसला लिया कि “वंदे मातरम” के सिर्फ पहले दो पद ही सार्वजनिक आयोजनों में गाए जाएंगे, क्योंकि बाकी हिस्सों में धार्मिक संदर्भ हैं।
  • लेकिन आज़ादी के बाद भी कई बार इस गीत को लेकर राजनीतिक और धार्मिक विवाद उठते रहे।

 हालिया विवाद: वंदे मातरम या वंदे भारत?

हाल ही में राजस्थान के एक शिक्षकों के कार्यक्रम में एक विधायक ने एक व्यक्ति से “वंदे मातरम” बोलने को कहा। जब उसने हिचकिचाहट दिखाई, तो विधायक ने कहा  “देश से प्यार नहीं है क्या?”

इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और “वंदे मातरम बनाम वंदे भारत” को लेकर बहस छिड़ गई।

कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या किसी को यह नारा बोलने के लिए मजबूर किया जा सकता है? क्या देशभक्ति की पहचान सिर्फ एक नारे से की जानी चाहिए?

 पीएम मोदी की अपील युवाओं से

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में एक सभा में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि 

“आज के युवाओं को इतिहास जानना चाहिए। जो बातें सुनाई जाती हैं, उनके पीछे के तथ्य खुद खोजिए। किसी भी नारे या प्रतीक को बिना समझे अस्वीकार मत कीजिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि “वंदे मातरम” भारत की एकता और शक्ति का प्रतीक है, इसे धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।

उनका संदेश स्पष्ट था
  युवा पीढ़ी को तथ्यों और तर्क के आधार पर सोचना चाहिए, न कि अफवाहों और राजनीति के प्रभाव में आकर।

 राजनीतिक दृष्टिकोण

“वंदे मातरम” को लेकर राजनीति हमेशा से सक्रिय रही है।

  • भाजपा का मानना है कि यह गीत भारत की आत्मा है और हर नागरिक को इसे गर्व से गाना चाहिए। 
  • कांग्रेस और विपक्षी दलों का कहना है कि यह मजबूरी नहीं बननी चाहिए  देशभक्ति को नारे से नहीं, कर्म से परखा जाना चाहिए।

हाल ही में बीजेपी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि 1937 में नेहरू ने “माँ दुर्गा” वाले पदों को हटा दिया, जो “पाप” था। वहीं कांग्रेस ने जवाब दिया कि उस समय यह निर्णय सभी धर्मों की भावनाओं को ध्यान में रखकर लिया गया था।

 धार्मिक दृष्टिकोण

धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो 

  • हिंदू संगठनों का कहना है कि “वंदे मातरम” मातृभूमि की वंदना है, किसी देवी की नहीं।
  • जबकि कुछ मुस्लिम संगठन कहते हैं कि वे भारत से प्रेम करते हैं, लेकिन किसी देवी की आराधना नहीं कर सकते।

यहां असली समस्या नारा नहीं है  बल्कि व्याख्या है।
कई विद्वानों का मानना है कि अगर गीत को देशप्रेम के प्रतीक के रूप में समझा जाए, तो इसमें किसी धर्म का विरोध नहीं है।

 युवाओं के लिए सीख

आज की युवा पीढ़ी के लिए इस विवाद से कुछ अहम बातें सीखी जा सकती हैं 

  • इतिहास को जानिए:
    बिना पढ़े या समझे किसी बात पर राय मत बनाइए।
  • सच्चाई खुद खोजिए:
    सोशल मीडिया पर देखी हर बात सच नहीं होती।
  • राष्ट्रभक्ति को कर्म से दिखाइए:
    सिर्फ नारे से नहीं, अपने काम और जिम्मेदारी से देशभक्ति दिखाइए।
  • विविधता का सम्मान कीजिए:
    भारत की ताकत उसकी विविधता में है  हर धर्म, हर संस्कृति का आदर करना जरूरी है। 

 विशेषज्ञों की राय

इतिहासकारों के अनुसार, “वंदे मातरम” का मूल उद्देश्य था मातृभूमि के प्रति श्रद्धा प्रकट करना।
राजनीति और धर्म के बीच इसे खींचने से गीत की असली भावना कमजोर पड़ जाती है।

कुछ विद्वान कहते हैं कि इस गीत के विवाद को खत्म करने के लिए सरकार और समाज दोनों को शिक्षित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, न कि भावनात्मक या धार्मिक दृष्टिकोण।

 निष्कर्ष

“वंदे मातरम” गीत हमारे देश की आत्मा से जुड़ा हुआ है।
यह एक ऐसी रचना है जिसने आज़ादी की लड़ाई में लाखों लोगों को प्रेरित किया, लेकिन आज राजनीतिक और धार्मिक बहस का विषय बन गई है।

प्रधानमंत्री मोदी की अपील में एक गहरा संदेश है 

“युवाओं को सच्चाई खुद जाननी चाहिए। जो बातें इतिहास में कही गई हैं, उन्हें दोहराने से बेहतर है कि उन्हें समझा जाए।”

अगर हर नागरिक “वंदे मातरम” के असली अर्थ  मातृभूमि की जय को समझ ले, तो शायद इस विवाद का अंत हो सकता है।

 अंतिम पंक्तियाँ

“वंदे मातरम सिर्फ एक नारा नहीं, यह भावना है
जो हमें याद दिलाती है कि इस भूमि ने हमें सब कुछ दिया है।
धर्म से ऊपर उठकर, दिल से कहो  वंदे मातरम।”

 

 वंदे मातरम
वंदे मातरम