लोकसभा चुनाव में भाजपा के नाक की सीट रही अयोध्या (फैजाबाद) को जीतकर सपा ने भाजपा के राम मंदिर मुद्दे को फेल कर दिया है। साथ ही भविष्य में होने वाले चुनावों की दिशा भी बदलते हुए यह संकेत दिया है कि अब यहां राम मंदिर मुद्दा नहीं बचा है।
चुनाव जीतने के लिए अन्य मुद्दों पर चर्चा करने से बात नहीं होगी। भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पांच अगस्त, 2020 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के भूमिपूजन और 2024 के आम चुनावों की नींव डाली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीच-बीच में अयोध्या आकर इस मुद्दे को फिर से उठाया। 22 जनवरी को मंदिर के उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा के बाद से देश भर से नेताओं को यहां लाकर मुद्दे को गर्म रखने की कोशिश की गई, लेकिन जनता ने भाजपा की सभी कोशिशों को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
भाजपा ने फैजाबाद की प्रतिष्ठित सीट सहित मंडल की सभी सीटें और पूर्वांचल की कई महत्वपूर्ण सीटें खो दीं। विभिन्न सीटें हारने पर विभिन्न बहसें हो रही हैं, लेकिन मंदिर बनने के बाद भी अयोध्या की जनता का विश्वास न जीत पाने से कई प्रश्न उठते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि इस निर्णय ने देश में होने वाले चुनावों को अब एक नई दिशा दी है। अब देश का जनादेश पाने के लिए सिर्फ मंदिर-मस्जिद की राजनीति ही नहीं बल्कि दूसरे मुद्दों पर भी विचार करना होगा।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि जनता ने भाजपा के राममंदिर कार्ड को महज छह माह में ही नकार दिया है। भविष्य में अब यह मुद्दा भाजपा नहीं भुना सकेगी। यदि चुनावों में राम मंदिर का राग अलापा भी जाए तो अयोध्या की जनता का यह जनादेश आईना दिखाने के लिए काफी होगा।
सपा की रणनीति समझ ही नहीं पाए
भारत गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में अयोध्या को जीतने के लिए बहुत कुछ किया। फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा क्षेत्र सामान्य है। यहां, हर लोकसभा चुनाव में, अगड़े और पिछड़े के बीच तुलना की जाती है। पिछली बार भाजपा ने लल्लू सिंह को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन इस बार सपा ने आनंदसेन यादव को चुना। भाजपा ने बाजी हासिल की।
सपा ने इस बार अपनी रणनीति बदली। जैसा कि हमेशा की तरह, पिछड़े और सामान्य जाति के उम्मीदवारों की जगह दलित उम्मीदवार को चुना गया। वह भी पासी है। करीब डेढ़ लाख पासी वोटबैंक इस सीट पर हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में कुर्मी और निषाद भी बहुत हैं।
पासी की तरह ही ये दोनों जातियां भी भाजपा की कोर वोटबैंक मानी जाती रही हैं। ऐसे में सपा ने अगल-बगल की सीटों पर भी सियासी समीकरण साधे। बस्ती और अंबेडकरनगर में कुर्मी उम्मीदवार उतारा तो सुल्तानपुर में निषाद बिरादरी का उम्मीदवार उतार कर इन जातियों को भी गोलबंद किया।
यह 1957 के बाद पहली बार अनुसूचित जाति का सांसद बना। भाजपा के दो बार के सांसद लल्लू सिंह ने मिल्कीपुर के सपा विधायक अवधेश प्रसाद को 55 हजार वोटों से हराया।
अति आत्मविश्वास में रही भाजपा
फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का चार पर कब्जा है। सिर्फ मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद विधायक थे। भाजपा रामंदिर उद्घाटन और वहां बन रहे कॉरिडोर को लेकर उत्साहित थी। पार्टी कार्यकर्ता भी अति आत्मविश्वास में रहे।
जबकि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के कुछ दिनों बाद ही फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा की हार की देश भर में चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया पर लोग खुलकर अयोध्या की जनता को बदनाम कर रहे हैं और अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। सपा नेता ने विजयी प्रत्याशी अवधेश प्रसाद को जेड प्लस सुरक्षा की मांग की है, जिससे उनकी जान खतरे में है।
इस संबंध में समाजवादी छात्रसभा के राष्ट्रीय महासचिव मनोज पासवान ने प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह को पत्र लिखा है और अवधेश प्रसाद के लिए जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा की मांग की है।
अपने भेजे गए पत्र में उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया सहित संचार के माध्यमों में अयोध्या के निवासियों पर असहज करने वाली टिप्पणियां व धमकियां दी जा रही हैं। ऐसे में उन पर कभी भी कोई सुनियोजित अनहोनी या असामान्य घटना हो सकती है। पूर्व में भी इस प्रकार की घटनाएं हो चुकी हैं। अत: अवधेश प्रसाद को सुरक्षा की दृष्टि से जेड प्लस सुरक्षा प्रदान की जाए।
याद रखें कि समाजवादी पार्टी ने प्रदेश की 37 सीटों पर अकेले और इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर 43 सीटों पर जीत हासिल की, जो सभी को हैरान कर दिया। इससे सपा को पुनर्जीवित किया गया है, लेकिन 2019 के मुकाबले यूपी में भाजपा की सीटें काफी कम हो गई हैं। भाजपा नेता चुनाव से पहले यूपी की सभी 80 सीटों पर जीत का दावा कर रहे थे। सभी को फैजाबाद लोकसभा सीट का परिणाम चौंका दिया।