बीमारी के चलते हाथ नहीं हिला पा रहा था युवक, डॉक्टरों ने ऐसे किया उपचार 

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एम्स, ऋषिकेश के चिकित्सकों ने एक रोगी के हाथ में बनी साढ़े पांच किलो की गांठ को निकालने में सफलता हासिल की है। दाएं हाथ में बनी इस गांठ ने कैंसर का रूप ले लिया था, जिससे इसके फैलने की आशंका की वजह से रोगी का हाथ काटने की नौबत आ गई थी। ऐसी जटिल स्थिति में संस्थान के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने न केवल मरीज का हाथ कटने से बचा लिया अपितु इसके लिए अपनाई गई री-कंसट्रक्शन मेडिकल तकनीक से रोगी के हाथ में नई रक्त वाहिकाओं को प्रतिस्थापित करने में भी सफलता प्राप्त की है। एक माह तक आब्जर्वेशन में रखने के बाद स्वास्थ्य लाभ मिलने पर मरीज को अब अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।

उत्तर प्रदेश के रामपुर के रहने वाले एक 25 वर्षीय मरीज के हाथ की कोहनी के पास गांठ (सॉफ्ट टिश्यू सार्कोमा) बन गई थी। धीरे-धीरे कुछ समय बाद इस गांठ में फैलाव होने लगा और गांठ का वजन बढ़ने के कारण मरीज को हाथ का मूवमेंट करने में परेशानी होने लगी। चिकित्सकों के मुताबिक इस गांठ ने ट्यूमर का रूप ले लिया था और इसका कैंसर में परिवर्तित होने का खतरा बना था। स्थिति गंभीर होते देख वहां के स्थानीय चिकित्सकों ने मरीज को बताया कि जीवन बचाने के लिए उसका हाथ काटना पड़ सकता है। ऐसे में आखिरी उम्मीद लिए यह मरीज एम्स ऋषिकेश पहुंचा। यहां संस्थान के आर्थोपेडिक और बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने विभिन्न जांचों के बाद निर्णय लिया कि मरीज का हाथ और जीवन दोनों को बचाना जरूरी है। ऐसे में टीम ने री- कंस्ट्रक्शन सर्जरी करने का निर्णय लिया और 14 मार्च 2024 को इस रोगी की सर्जरी प्रक्रिया को बखूबी अंजाम दिया गया।

इस संबंध में ऑर्थो विभाग के हेड प्रोफेसर पंकज कंडवाल ने बताया कि रोगी के हाथ में बनी गांठ इतनी बड़ी थी कि सर्जरी करने में चिकित्सकीय टीम को 10 घंटे से अधिक का समय लगा। हालांकि यह सर्जरी पूर्णतः सफल रही, लेकिन मरीज का हाथ बचाने के लिए टीम को विभिन्न चुनौतियों से जूझना पड़ा। सर्जरी टीम के सदस्य आर्थो विभाग के सर्जन डॉ. मोहित धींगरा ने टीम के प्रत्येक सदस्य के लिए इसे बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य बताया। उन्होंने बताया कि टीम के लिए यह जोखिम भरा कार्य था। डॉ. धींगरा के अनुसार एक महीने तक चिकित्सीय निगरानी में रखने के बाद 3 दिन पहले रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। मरीज अब पूरी तरह से ठीक है और उसका हाथ कटने से बच गया है।
जटिलतम सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम में आर्थो विभाग के डॉ. मोहित धींगरा, डॉ. विकास माहेश्वरी, डॉ. विकास ओल्खा के अलावा बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग की सर्जन डॉ. मधुबरी वाथुल्या, डॉ. तरूणा सिंह और डॉ. भैरवी झा आदि शामिल थे। संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह और चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने सर्जरी करने वाले चिकित्सकों के कार्यों की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक रोगी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए संस्थान प्रतिबद्ध है।

पैरों से हाथ में प्रतिस्थापित की गई नाड़ियां

सर्जरी की इस री-कंस्ट्रक्शन प्रक्रिया द्वारा मरीज के पैरों से नसों को निकालकर उसके हाथ में प्रतिस्थापित किया गया। इस प्रक्रिया को री-कंस्ट्रक्शन अर्थात पुनर्निमाण कहा जाता है। इस प्रक्रिया को पूर्ण कराने में बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग के चिकित्सकों की विशेष भूमिका रही। बर्न एवं प्लास्टिक शल्य चिकित्सा विभाग की सर्जन डॉ. मधुबरी वाथुल्या बताती हैं कि रोगी के हाथ से जिस जगह से ट्यूमर हटाया गया, वहां की नसें खराब हो चुकी थीं। इसलिए मरीज के पैरों से नसों को निकालकर लगभग 32 सेमी. नई रक्त वाहिकाएं बनाई गईं। साथ ही उसकी छाती से मांशपेशियों और त्वचा के अंश लेकर हाथ में पुर्नस्थापित किया गया। उन्होंने बताया कि यह बेहद जटिल प्रक्रिया थी जो पूर्णतः सफल रही।