आपदाग्रस्त क्षेत्र से अधिकतर जीवित लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है, लेकिन मलबे में दबे लोगों की तलाश अब भी जारी है। आधुनिक उपकरणों की मदद से मलबे में जिंदगी खोजने की कोशिश हो रही है, मगर जो लोग कई फीट गहराई में दब गए हैं, उन्हें निकालना बड़ी चुनौती है।
सिलक्यारा सुरंग हादसे की तरह धराली में भी चट्टानों का मलबा आधुनिक तकनीक की परीक्षा लेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि 15 से 20 फीट नीचे दबे लोगों को ढूंढने में तकनीक भी सीमित साबित होगी। ऐसे में केवल मैन्युअल तरीके से खोदाई कर ही उन्हें बाहर निकाला जा सकता है।

12 नवंबर 2023 को उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में मलबा गिरने से 41 मजदूर फंस गए थे। उन्हें बचाने के लिए देश-विदेश की लगभग हर तकनीक का सहारा लिया गया था। विश्व प्रसिद्ध ऑगर मशीन का इस्तेमाल हुआ और विदेश से आए विशेषज्ञों ने भी अहम भूमिका निभाई। करीब 15 दिन की कोशिशों के बाद ‘रैट माइनर्स’ ने हाथों से खोदकर रास्ता बनाया और सभी मजदूरों को सकुशल बाहर निकाला।
कुछ उपकरण ऐसे भी हैं जो सांस, दिल की धड़कन और ऑक्सीजन के स्तर को पहचानकर जीवित लोगों का पता लगा सकते हैं, लेकिन धराली में चुनौती अलग है। यहां 15 से 20 फीट गहरा मलबा पूरे मैदान में फैला हुआ है। बीते मंगलवार को कुछ ही सेकेंड में 15 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से लाखों टन मलबा बहकर आया और कई लोग पलक झपकते ही इसमें दब गए।