धराली आपदा: मलबे में दब गए शहीद के परिवार के सपने

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मां की मेहनत और बेटे की लगन को खीर गंगा की तबाही ने पलभर में उजाड़ा

धराली आपदा ने एक शहीद के परिवार की वर्षों की मेहनत और सपनों को तहस-नहस कर दिया। पिता की शहादत के बाद मां और बेटे ने संघर्ष कर जीवन को संवारने की कोशिश की, लेकिन 5 अगस्त को आई तबाही ने सब कुछ खत्म कर दिया।

शहीद पिता, संघर्ष करती मां और नन्हा बेटा

डुंडा ब्लॉक के मालना गांव निवासी मनोज भंडारी के पिता, राजेंद्र मोहन भंडारी, आईटीबीपी में सिपाही के पद पर तैनात थे।

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  • शहादत: 9 मई 1991 को पंजाब में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए मात्र 28 वर्ष की आयु में शहीद।

  • उस समय: मनोज की उम्र ढाई साल और मां कुसुम लता भंडारी मात्र 21 वर्ष की थीं।

पति की शहादत के बाद मां ने अकेले बेटे को पढ़ाया-लिखाया।

मां की मेहनत रंग लाई, बेटा बना अधिकारी

मां के अथक प्रयासों से मनोज 2011 में आईटीबीपी में उप निरीक्षक (फार्मासिस्ट) बने।
उन्होंने मध्य प्रदेश, मातली और लद्दाख में सेवाएं दीं।
2020 में बीआरएस लेकर उत्तरकाशी लौटने का फैसला किया ताकि मां और परिवार के साथ रह सकें।

रोजगार का सपना, रिसॉर्ट का निर्माण

  • पहले उत्तरकाशी में मेडिकल व्यवसाय शुरू किया।

  • फिर स्थानीय युवाओं को रोजगार देने और पर्यटन को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा।

  • 2024 में मां की पेंशन के बदले बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लेकर सेब के बागानों के बीच 14 कमरों का रिसॉर्ट बनाया।

  • रिसॉर्ट में 7 लोग कार्यरत थे।

आपदा में पलभर में बर्बाद हुआ सब कुछ

5 अगस्त को खीर गंगा में आई बाढ़ से रिसॉर्ट पूरी तरह मलबे में बदल गया। उस समय वहां केवल 3 लोग मौजूद थे, जो किसी तरह बच निकले।
मनोज ने कहा— “पिता का चेहरा मैंने कभी ठीक से नहीं देखा, बस तस्वीरों में ही पहचाना है। अब इस आपदा के बाद स्थिति वैसी ही हो गई है, जैसी 1991 में पिता की शहादत के बाद थी।”

अब उम्मीद सरकार से

परिवार की नजरें अब सरकार पर टिकी हैं। प्रभावितों का पुनर्वास कैसे होगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।