Dehradun: जोशीमठ के पहाड़ पर जर्जर भवन का बोझ और ड्रेनेज प्लान की कमी; मानसून का खतरा फिर से बढ़ा

0
36

जोशीमठ में ड्रेनेज प्रणाली अच्छी तरह से काम नहीं कर रही है, इसलिए बारिश का पानी पहाड़ के भीतर समाने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा चौबीस पॉकेट ऐसे हैं, जहां पहाड़ पर खड़े 800 से अधिक जर्जर भवन खड़े हैं। साल भर गुजर जाने के बाद मानसून फिर से आएगा, लेकिन पहाड़ की स्थिरता के लिए अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने इन सभी कार्यों को जल्द से जल्द शुरू करने की सलाह दी थी। भूधंसाव के बाद जांच में पहाड़ के भीतर चार दर्जन दरारें पाई गईं।

जनवरी 2023 में भारी ठंड में जोशीमठ के पहाड़ों से अचानक पानी गिरा, जिससे सैकड़ों घरों की दीवारों और फर्श में दरारें आ गईं। मकान किसी तरह खाली कर दिए गए। पहाड़ के लिए खतरा बने होटलों को ढहाकर मलबा बाहर निकाला गया। जांच के बाद, विभिन्न तकनीकी संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक टीम ने रिपोर्ट नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को भेजी। जिसमें पहाड़ की स्थिरता के लिए जल्द से जल्द बुनियादी कार्य शुरू करने की सिफारिश की गई। सीबीआरआई रुड़की की टीम ने जांच के दौरान ४० दरारें (चौड़ाई ३०० मिलीमीटर और गहराई ३ से ४ मीटर) पाई, जिनमें से अधिकांश इन्हीं दरारों के आसपास भवनों को नुकसान हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार अतिसंवेदनशील भवनों में दरारों की चौड़ाई 5 मिलीमीटर से अधिक थी। जबकि मध्यम रूप से संवेदनशील भवनों में आई दरारें दो से पांच मिलीमीटर तक चौड़ी थी। भूधंसाव के दौरान जोशीमठ में 2300 से अधिक भवनों का सर्वे करने वाले सीबीआरआई वैज्ञानिक डॉ. अजय चौरसिया ने बताया कि जोशीमठ में 14 पॉकेट ऐसी हैं, जहां पर बने करीब 800 जर्जर भवन रेड श्रेणी में हैं। जिन्हें ध्वस्त कर मलबा पूरी तरह साफ करना है। ताकि पहाड़ के ऊपर का भार कम हो सके। यहां के लोगों का पुनर्वास अन्य जगहों पर किया जाना है। इसके अलावा करीब 700 भवनों की मरम्मत की जानी है।

रिपोर्ट बताती है कि पहाड़ पर सही ड्रेनेज व्यवस्था नहीं होने से खतरा बढ़ा है। क्योंकि बारिश और घरों का पानी दरारों के भीतर जाने से बहुत नुकसान हुआ है ऐसे में वैज्ञानिक रिपोर्ट में जर्जर इमारतों को हटाने की सिफारिश की गई है, साथ ही ड्रेनेज प्लान और रिटेनिंग वॉल बनाने की भी सिफारिश की गई है। एक साल बाद मानसून फिर आने वाला है। यही कारण है कि अगर भारी बारिश होती है तो पहाड़ पर भूधंसाव का खतरा फिर से उभर सकता है।
पहाड़ के भीतर पानी रिसने से सक्रिय हुए पुराने भूस्खलन
वैज्ञानिक रिपोर्ट में आकलन किया गया है कि भूजल के अत्यधिक दोहन से भूधंसाव हुआ और कई पुराने भूस्खलन भी फिर से सक्रिय हो गए। जिससे हालत बिगड़ गए। इसके साथ ही जोशीमठ की प्रभावित चट्टानें उत्तर की झुकने से ढलान बना है। ये चट्टानें पुराने भूस्खलन के जमा मलबे से बनी हैं। मोटे दाने वाली मलबे की सामग्री भी पहाड़ और भवनाें की अस्थिरता का कारण रही।

रिपोर्ट में की गई हैं निम्न सिफारिशें
जोशीमठ में इमारतों का मैपिंग करना, खतरनाक क्षेत्रों का आकलन करना और उनके कारणों का पता लगाना, हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कार्यों का मैनुअल बनाना और उसका सख्ती से पालन करना, पहाड़ों पर भूवैज्ञानिक आधार पर सुरक्षित भूमि का मानचित्र बनाना, पूर्व चेतावनी प्रणाली के जरिए निरंतर निगरानी और आपदा पूर्वानुमान करना, ड्रेनेज प्लान और पहाड़ों की स्थिरता