सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य का दर्जा बहाल करने की याचिका पर केंद्र से जवाब माँगा
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब माँगा। इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने की।
यह याचिका शिक्षाविद ज़हूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक ने दायर की थी। पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद निर्धारित की।

केंद्र का तर्क
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से याचिका खारिज करने का आग्रह किया और कहा कि अतीत में सर्वोच्च न्यायालय ने इसी तरह की याचिकाओं पर जुर्माना भी लगाया था। उन्होंने कहा कि चुनाव एक नियमित लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और न्यायाधीश देश के इस हिस्से की “विचित्र स्थिति” से अवगत हैं।
मेहता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसे मामलों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में केवल एक घटना या मांग पर ही नहीं, बल्कि कई कारकों पर विचार करना शामिल होता है।
पहलगाम घटना पर मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया। इसके जवाब में, मुख्य न्यायाधीश गवई ने टिप्पणी की, “पहलगाम में जो हुआ उसे आप नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। अंततः निर्णय संसद और कार्यपालिका को ही लेना है।”
हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने पहलगाम के संदर्भ में विस्तार से नहीं बताया, लेकिन उनके बयान से संकेत मिलता है कि इस क्षेत्र में हालिया घटनाक्रम या सुरक्षा संबंधी चिंताएँ राज्य का दर्जा बहाल करने के सरकार के रुख को प्रभावित कर सकती हैं।
अगले कदम
अदालत ने अब केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है। इसके बाद मामले की फिर से सुनवाई होगी, जहाँ जम्मू-कश्मीर की राज्य की मांग के कानूनी और राजनीतिक दोनों पहलुओं पर विस्तार से चर्चा होने की उम्मीद है।