उत्तरकाशी: ऋषिगंगा आपदा के बाद भू-वैज्ञानिकों ने अर्ली वार्निंग सिस्टम की जरूरत बताई थी, लेकिन अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई

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सात फरवरी 2021 को ग्लेशियर फटने से ऋषिगंगा नदी में आई भीषण बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी। इस आपदा में ऋषिगंगा और तपोवन जलविद्युत परियोजनाएं पूरी तरह नष्ट हो गईं, जबकि ऋषिगंगा ऊर्जा परियोजना में काम कर रहे 200 से अधिक मजदूर और अन्य लोग लापता हो गए थे।

घटना के बाद गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभागाध्यक्ष प्रो. एमपीएस बिष्ट सहित कई वरिष्ठ भू-वैज्ञानिकों ने राज्य की नदी घाटी परियोजनाओं के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में श्रृंखलाबद्ध अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) लगाने की सिफारिश की थी। उनका मानना था कि इस तकनीक से आपदा की समय रहते जानकारी देकर जनहानि को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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हालांकि, चार साल बीतने के बावजूद शासन स्तर पर इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अर्ली वार्निंग सिस्टम की व्यवस्था होती, तो हाल ही में हुई धराली आपदा में नुकसान का आंकड़ा शायद कम होता।

प्रो. बिष्ट ने उदाहरण देते हुए बताया कि 29 मई को यूरोप के आल्प्स पर्वत में धराली जैसी आपदा आई थी, जब ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर बर्फ, कीचड़ और चट्टानों का सैलाब गांव की ओर बढ़ा। स्विट्जरलैंड का ब्लैटिन गांव पूरी तरह जलमग्न हो गया, लेकिन अर्ली वार्निंग सिस्टम की वजह से समय रहते पूरे गांव को खाली करा लिया गया, यहां तक कि भेड़ और गायों को भी हेलीकॉप्टर से सुरक्षित निकाल लिया गया।

उन्होंने कहा कि धराली आपदा के बाद सरकार को इस तकनीक को अपनाने में गंभीरता दिखानी होगी, अन्यथा भविष्य में और बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

इस बीच, धराली आपदा को एक सप्ताह बीत चुका है, लेकिन अब तक इसके सही कारणों का पता नहीं चल सका है। यह स्थिति उत्तराखंड जैसे आपदा-प्रवण राज्य में व्यवस्थाओं की कमजोरियों को उजागर करती है।