Exclusive: वैज्ञानिकों ने पाया कि मोबाइल और लैपटॉप बैटरी अब चार गुना बैकअप देंगे

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गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मोबाइल लैपटॉप की बैटरी की जल्दी खत्म होने की समस्या को हल किया है। University of Virginia ने ग्रेफाइट युक्त इलेक्ट्रोड बनाने में सफलता हासिल की और उच्च ऊर्जा संरक्षित बैटरी के लिए इसका पेटेंट भी दिया है।

इससे बैटरी को जल्दी निकालने की समस्या समाप्त हो जाएगी। जनसंख्या वृद्धि के चलते ऊर्जा (सोलर, पेट्रोलियम, कोयला आदि) का उत्पादन और संरक्षण महत्वपूर्ण है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इसका हल खोजने की कोशिश कर रहे हैं। हरितक्रांति के संस्थापक पंतनगर विश्वविद्यालय ने इसमें बाजी मारकर एक बार फिर अपने कला का लोहा मनवाया है।

यहां के शोधार्थियों ने, रसायन विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी के निर्देशन में, सात वर्षों की मेहनत से दो हजार फैरेट (चार्ज स्टोरेज क्षमता) प्रति ग्राम की ऊर्जा बनाई है। इस तरह के इलेक्ट्रोड लीथियम आयन (क्लोराइड या साल्ट) भविष्य में बैटरी की दक्षता को बढ़ा सकते हैं। यही लैपटॉप, इलेक्ट्रोड मोबाइल आदि की बैटरियों की बैकअप क्षमता और चार्जिंग क्षमता निर्धारित करता है। विवि का यह शोध व्यावसायिक रूप से लागू होते ही महान बदलाव लाएगा। अब तक इस पर बारह शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं।

सरलता से तैयार करना मुमकिन

अमेरिकी विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. जैदी ने बताया कि इलेक्ट्रोड बनाने का प्रक्रिया बहुत सरल है। स्टील की प्लेट को एक निश्चित आकार के टुकड़ों में काटते हैं, फिर इसकी सतह को रेगमाल से घिसते हैं, जिससे यह रूखा हो जाता है। इस टुकड़े पर बेगलाइट, चलायमान बहुलक (पॉलीमर), विशिष्ट प्रकार का लवण और अल्प मात्रा में अवलायमान बहुलक का मिश्रण लगाया जाता है। लेपन प्रक्रिया साधारण तापमान पर छह से सात घंटे चलती है। बाद में हल्के गर्म तापमान पर सुखाने के बाद उनकी जांच की जाती है।

इस परीक्षण के लिए विभिन्न प्रकार की अस्थायी बैटरियों को विकसित किया जाता है।

ऊर्जा संरक्षण में फायदेमंद ग्रेफाइटयुक्त इलेक्ट्रोड बनाने के लिए आवश्यक रासायनिक पदार्थ आसानी से उपलब्ध हैं। तकनीक से बनाए गए इलेक्ट्रोड अम्लीय, क्षारीय और उदासीन माध्यमों में विद्युत रासायनिक ऊर्जा को अच्छी तरह से संरक्षित करते हैं। भविष्य में इस प्रकार की इलेक्ट्रोड शुष्क बैटरियों की दक्षता कई गुना बढ़ सकेगी।

– एमजीएच जैदी, प्राध्यापक रसायन विज्ञान विभाग, जीबी पंत विवि, पंतनगर।